मंगलवारी चतुर्थी

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

ग्रहण - महत्वपूर्ण साधना तिथि

चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है। श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके " नमो नारायणाय" मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर लेता है।

देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। अतः सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर ( 9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालकक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं। ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।

ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए।

ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल(वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं।

ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए।

ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जररूतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।

ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।

ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए।

भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। यदि गंगा जल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है।

ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।

अगर ग्रहण काल में स्वास्थ्य मन्त्र ( हूं विष्णवे नमः) का जप किया जाये तो वो बाकी दिनों से ज्यादा असरदार होता हैं। जिन साधको को ब्रह्मचर्य में दृढ़ता लानी हो उनको " अर्यमाय नमः" की एक माला का जप ग्रहणकाल में अवश्य करनी चाहियें।

साधकों को ग्रहणकाल में अपने गुरुदेव के लिये महामृत्युन्जय मन्त्र का जप उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिये करना चाहिये। अतः मेरा अनुरोध है कि सभी साधकों को कम से कम एक माला तो महामृत्युन्जय मन्त्र की पूज्य गुरुदेव के लिये अवश्य करें।

वर्ष २०११ में ४ सूर्य ग्रहण और २ पूर्ण चन्द्र ग्रहण होंगे। जो कि इस प्रकार है।

०१ - ०४ जनवरी (सूर्य ग्रहण) [ 04 January 2011 ]
०२ - ०१ जून (सूर्य ग्रहण) [ 01 June 2011 ]
०३ - १५ जून (पूर्ण चन्द्र ग्रहण) [ 15 June 2011 ]
०४ - ०१ जुलाई (सूर्य ग्रहण) [ 01 July 2011 ]
०५ - २५ नवम्बर (सूर्य ग्रहण) [ 25 November 2011 ]
०६ - १० दिसम्बर (पूर्ण चन्द्र ग्रहण) [ 10 December 2011 ]