मंगलवारी चतुर्थी

रविवार, 2 जनवरी 2011

प्रदोष व्रत

प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत कहते हैं। यदि इन तिथियों को सोमवार हो तो उसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं, यदि मंगलवार हो तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं और शनिवार हो तो उसे शनि प्रदोष व्रत व्रत कहते हैं। विशेष कर सोमवार, मंगलवार एवं शनिवार के प्रदोष व्रत अत्याधिक प्रभावकारी माने गये हैं। साधारण तौर पर अलग-अलग जगह पर द्वाद्वशी और त्रयोदशी की तिथि को प्रदोष तिथि कहते हैं। इस दिन व्रत रखने का विधान हैं।

प्रदोष व्रत का महत्व कुछ इस प्रकार का बताया गया हैं कि यदि व्यक्ति को सभी तरह के जप, तप और नियम संयम के बाद भी यदि उसके गृहस्थ जीवन में दुःख, संकट, क्लेश आर्थिक परेशानी, पारिवारिक कलह, संतानहीनता या संतान के जन्म के बाद भी यदि नाना प्रकार के कष्ट विघ्न बाधाएं, रोजगार के साथ सांसारिक जीवन से परेशानियाँ खत्म नहीं हो रही हैं, तो उस व्यक्ति के लिए प्रति माह में पड़ने वाले प्रदोष व्रत पर जप, दान, व्रत इत्यादि पुण्य कार्य करना शुभ फलप्रद होता हैं।

ज्योतिष कि द्रष्टि से जो व्यक्ति चंद्रमा के कारण पीडित हो उसे वर्ष भर प्रदोष व्रतों पर चाहे वह किसी भी वार को पडता हो उसे प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिये। प्रदोष व्रतों पर उपवास रखना, लोहा, तिल, काली उड़द, शकरकंद, मूली, कंबल, जूता और कोयला आदि दान करने से शनि का प्रकोप भी शांत हो जाता हैं, जिससे व्यक्ति के रोग, व्याधि, दरिद्रता, घर की अशांति, नौकरी या व्यापार में परेशानी आदि का स्वतः निवारण हो जाएगा।

भौम प्रदोष व्रत एवं शनि प्रदोष व्रत के दिन शिवजी, हनुमानजी, भैरव कि पूजा-अर्चना करना भी लाभप्रद होता हैं।

गुरुवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत विशेष कर पुत्र कामना हेतु या संतान के शुभ हेतु रखना उत्तम होता हैं। संतानहीन दंपत्तियों के लिए इस व्रत पर घरमें मिष्ठान या फल इत्यादि गाय को खिलाने से शीघ्र शुभ फलकी प्राप्ति होति हैं। संतान कि कामना हेतु 16 प्रदोष व्रत करने का विधान हैं, एवं संतान बाधा में शनि प्रदोष व्रत सबसे उत्तम मना गया हैं।

संतान कि कामना हेतु प्रदोष व्रत के दिन पति-पत्नी दोनो प्रातः स्नान इत्यादि नित्य कर्म से निवृत होकर शिव, पार्वती और गणेशजी कि एक साथमें आराधना कर किसी भी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल अभिषेक, पीपल के मूल में जल चढ़ाकर सारे दिन निर्जल रहने का विधान हैं।

प्रदोष व्रत की कथा

प्रदोष व्रत का महात्म्य वेदों के ज्ञाता सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को सुनाया था। सूत जी बोले कलियुग में जब मनुष्य धर्म मार्ग से हटकर अधर्म के मार्ग पर लचेगा, भूलोक में हर तरफ अधर्म और अनाचार का चलन होगा। मनुष्य अपने मूल कर्तव्य से विमुख हो कर अनुचितकर्म, नीच कर्म इत्यादी कृत्यो में संलग्न होगा उस यह समय प्रदोष व्रत ऐसा व्रत होगा जो मानव को शिव कृपा का पात्र बनायेगा और नर्कगति से मुक्त होकर मनुष्य स्वर्ग लोक को प्राप्त होगा।

सूत जी सौनकादि ऋषियों बोले कि प्रदोष व्रत के पुण्य से कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के पाप और कष्ट नष्ट हो जायेगे। प्रदोष व्रत अति कल्याणकारी हैं, इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होगी।

अलग-अलग दिन के प्रदोष व्रत से मिलने वाले लाभ को विस्तार वताते हुवे सूत जी बोले
प्रदोष व्रत से हर प्रकार के दोष मिटाने वाला व्रत हैं। सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व होता हैं। जो इस प्रकार हैं।
· रविवार का प्रदोष व्रत अर्थात रवि प्रदोष व्रत करने से आरोग्य कि प्राप्ति होती हैं।
· सोमवार का प्रदोष व्रत अर्थात सोम प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति कि मनोकामना पूर्ण होती हैं।
· मंगलवार का प्रदोष व्रत अर्थात भोम प्रदोष व्रत करने से रोग दूर होते हैं तथा कर्ज से मुक्ति मिलती हैं।
· बुधवार का प्रदोष व्रत अर्थात बुध प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति कि कामना सिद्ध होती है।
· गुरुवार का प्रदोष व्रत अर्थात गुरु प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति शत्रु विजयी होता हैं।
· शुक्रवार का प्रदोष व्रत अर्थात शुक्र प्रदोष व्रत करने से सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है।
· शनिवार का प्रदोष व्रत अर्थात शनि प्रदोष व्रत करने से संतान(पुत्र) कि प्राप्ति होती हैं।
सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को बताया कि प्रदोष व्रत के महात्मय को सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता सती को सुनाया था। मुझे यही कथा और महात्मय महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया और यह उत्तम व्रत महात्म्य मैने आपको सुनाया हैं।

प्रदोष व्रत विधान बाताते हुवे सूत जी ने कहा है प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं। सूर्यास्त के पश्चात 2 घण्टे एवं 24 मिनट रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता हैं। इस व्रत में भगवान शंकर या गुरु की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।