मंगलवारी चतुर्थी

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

अमावस्या एक महत्वपूर्ण तिथि

हिन्दू पंचांग का एक माह १५-१५ दिनों के दो पक्षों में विभाजित होता है। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की कला पूर्ण रुप लेती है और कृष्ण पक्ष में चन्द्र कलाओं का क्षय होता है। मतान्तर के कारण कुछ शुक्ल पक्ष के पहले दिन या प्रतिपदा तिथि से माह की शुरुआत मानते हैं, दूसरा मत कृष्ण पक्ष के पहले दिन से माह का आरंभ मानते हैं। इसी क्रम में कृष्ण पक्ष का पन्द्रहवां दिन या अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है।

धर्मग्रंथों में चन्द्रमा की सोलहवीं कला को अमा कहा गया है। स्कन्दपुराण का श्लोक है -

अमा षोडशभागेन देवि प्रोक्ता महाकला। संस्थिता परमा माया देहिनां देहधारिणी ।।

जिसका अर्थ है कि चन्द्रमण्डल की अमा नाम की महाकला है, जिसमें चन्द्रमा की सोलह कलाओं की शक्ति शामिल है। जिसका क्षय और उदय नहीं होता है।


सरल शब्दों में कहें तो सूर्य और चन्द्रमा के मिलन के काल को अमावस्या कहते हैं। दूसरे अर्थ में इस दिन चन्द्रमा तथा सूर्य एक साथ रहते हैं। इसीलिए शास्त्रों में इसके अनेक नाम आए हैं। जैसे - अमावस्या, सूर्य-चन्द्र संगम, पंचदशी, अमावसी, अमावासी या अमामासी। जब अमावस्या को चन्द कला नहीं दिखाई देती है। तब वह कुहू अमावस्या कहा जाता है। अमावस्या माह में एक बार ही आती है।

शास्त्रों में में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है। जब अमावस्या के दिन सोम, मंगलवार और गुरुवार के साथ जब अनुराधा, विशाखा और स्वाति नक्षत्र का योग बनता है, तो यह बहुत पवित्र योग माना गया है। इसी तरह शनिवार, और चतुर्दशी का योग भी विशेष फल देने वाला माना जाता है। ऐसे योग होने पर अमावस्या के दिन तीर्थस्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण या कर्ज और पापों से मिली पीड़ाओं से छुटकारा मिलता है। इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है।

पुराणों में अमावस्या को कुछ विशेष व्रतों के विधान है।

अमावस्या पयोव्रत - इस व्रत में केवल पीने के लिए दूध ही ग्रहण किया जाता है। भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है। जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

अमावस्या व्रत - कूर्म पुराण के अनुसार इस दिन शिवजी की आराधना के लिए व्रत किया जाता है, जो व्रती की गंभीर पीड़ाओं का शमन करता है ।

अमावस्या के दिन क्या करें :-

- अमावस्या को घर में एक छोटा सा हवन अवश्य करें

सामग्री : १। काले तिल, २। जौं, ३। चावल, ४. गाय का घी, ५. चंदन पाउडर, ६. गुगल, ७. गुड़, ८. देशी कपूर, गौ चंदन या कण्डा।

विधि: गौ चंदन या कण्डे को किसी बर्तन में डालकर हवनकुंड बना लें, फिर उपरोक्त ८ वस्तुओं के मिश्रण से तैयार सामग्री से, घर के सभी सदस्य एकत्रित होकर नीचे दिये गये देवताओं की १-१ आहुति दें।

आहुति मन्त्र:

१. ॐ कुल देवताभ्यो नमः २. ॐ ग्राम देवताभ्यो नमः ३. ॐ ग्रह देवताभ्यो नमः ४. ॐ लक्ष्मीपति देवताभ्यो नमः
५. ॐ विघ्नविनाशक देवताभ्यो नमः

- हर अमावस्या को पितरों के निमित्त श्राद्ध अवश्य करें

हर अमावस्या को अपने पितरों का श्राद्ध भी अवश्य करना चाहियें अगर कोई श्राद्ध करने में असमर्थ है तो उसको कम से तिल मिश्रित जल तो अपने पितरों के निमित्त अर्पण करना ही चाहिये। वराह पुराण के १३ अध्याय (पितरों का परिचय, श्राद्ध के समय का निरूपण तथा पितृगीत) में आता है कि श्राद्धकर्ता जिस समय श्राद्धयोग्य पदार्थ या किसी विशिष्ट ब्राह्मण को घर में आया जाने अथवा उत्तरायण या दक्षिणायन का आरम्भ, व्यतीपात योग हो, उस समय श्राद्ध का अनुष्ठान करे। विषुव योग में, सूर्य और चन्द्र ग्रहण के समय, सूर्य के राश्यन्तर-प्रवेश में नक्षत्र अथवा ग्रहों द्वारा पीडित होने पर, बुरे स्वप्न दिखने पर तथा घर में नवीन अन्न आने पर काम्य-श्राद्ध करना चाहिये। जो अमावस्या अनुराधा, विशाखा एवं स्वाती नक्षत्र से युक्त हो, उसमें श्राद्ध करने से पितृगण आठ वर्षों तक तृप्त रहते हैं। इसी प्रकार जो अमावस्या पुष्य, पुनर्वसु या आर्द्रा नक्षत्र से युक्त हो, उसमें पूजित होने से पितृगण बारह वर्षों तक तृप्त रहते हैं। जो पुरुष देवताओं एवं पितृगण को तृप्त करना चाह्ते हैं उनके लिये धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद अथवा शतभिषा नक्षत्र से युक्त अमावस्या अत्यन्त दुर्लभ हैं। ब्राह्मण श्रेष्ठ! जब अमावस्या इन नौ नक्षत्रों से युक्त होती है, उस समय किया हुआ श्राद्ध पितृगण को अक्षय तृप्तिकारक होता हैं। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी, माघमास की अमावस्या, चन्द्र या सूर्य ग्रहण के समय तथा चारों अष्टकाओं (प्रत्येक मास की सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तिथियों के समूह की तथा पौष, माघ एवं फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथीयों को "अष्टका" की संज्ञा हैं) में अथवा उत्तरायण य दक्षिणायन के समय जो मनुष्य एकाग्रचित से पितरों को तिलमिश्रित जल भी दान कर देता है तो वह मानों सहस्त्र वर्षों के लिये श्राद्ध कर देता हैं। यह परम रहस्य स्वयं पितृगणों का बताया हुआ हैं। कदाचित्त माघ मास की अमावस्या का यदि शतभिषा नक्षत्र से योग हो जाय तो पितृगण की तृप्ति के लिये यह परम उत्कृष्ट काल होता हैं। द्विजवर! अल्प पुण्यवान पुरुषों को ऐसा समय नही मिलता और यदि माघ मास की अमावस्या का धनिष्ठा नक्षत्र से योग हो जाये तो उस समय अपने कुल में उत्पन्न पुरुष द्वारा दिये हुए अन्न एवं जल से पितृगण दस हजार वर्ष के लिये तृप्त हो जाते है तथा यदि माघी अमावस्या के साथ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का योग हो और उस समय पितरों के लिये श्राद्ध किया जाय तो इस कर्म से पितृगण अत्यन्त तृप्त होकर पूरे युग तक सुखपूर्वक शयन करते है। गंगा, शतद्रु, विपाशा, सरस्वती और नैमिषारण्य में स्थित गोमती नही में स्नानकर पितरों का आदरपूर्वक तर्पण करने से मनुष्य अपने समस्त पापों को नष्ट कर देता है। पितृगण सर्वदा य गान करते हैं कि वर्षाकाल में (भाद्रपद शुक्ल त्रियोदशी के) मघा नक्षत्र में तृप्त होकर फिर माघ की अमावस्या को अपने पुत्र-पौत्रादि द्वारा दी गयी पुण्य तीर्थों की जलांजली से हम कब तृप्त होंगें। विशुद्ध चित्त, शुद्ध धन, प्रशस्त काल, उपर्युक्त विधि, योग्य पात्र और परम भक्ति - ये सब मनुष्य को मनोवान्छित फल प्रदान करते हैं।

सोमवती अमावस्या :-
जिस सोमवार को अमावस्या पडती हो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है। सोमवती अमावस्या के दिन व्रत रखने का विधान है। सोमवती अमावस्या के दिन स्नान-दान को सर्वश्रेष्ठ माना जाता हैं।

- धर्म ग्रंथों के मत से सोमवार को अमावस्या बड़े भाग्य से ही पड़ती है, क्योकि पांडव अपने पूरे जीवन में सोमवती अमावस्या के संयोग हेतु तरसते रहें लेकिन उन्हे यह अवसर जीवन भर प्राप्त नहीं हुआ।

- सोमवती अमावस्या के दिन मौन धारण कर स्नान-ध्यान-दान करने से सहस्त्र गौ-दान के समान पुण्य प्राप्त होता हैं ऐसा महर्षि व्यास का कथन हैं।

- सोमवती अमावस्या के अवसर पर पवित्र तीर्थ स्थलों-नदी एवं जल कुंड-सरोवर में श्रद्धालु प्रातः ब्रह्म मुहूर्त के साथ स्नान प्रांरभ करते हैं एवं देर शाम तक यह चलता हैं।

- सोमवती अमावस्या पर पीपल कि १०८ बार परिक्रमा करते हुए पीपल तथा विष्णु के पूजन का विधान बताया हैं। परिक्रमा के साथ में फल या अन्य कुछ दान स्वरुप विद्वान ब्राह्मण को देना चाहिये इससे सोमवती अमावस्या के पुण्य का विशेष लाभ प्राप्त होता हैं।

- सोमवती अमावस्या के दिन भारत कि प्रमुख नदियों एवं तीर्थ स्थानो पर स्नान, गौदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान का विशेष महत्व माना गया है। इसी वजह से हर सोमवती अमावस्या पर गंगा तट पर श्रद्धालुओ का ताता लगा रहता हैं।

- सोमवती अमावस्या के दिन किया गया जप-तप, दान तथा ध्यान का फल सूर्य/चन्द्र ग्रहण में किये गये जप-तप, दान तथा ध्यान के फल के बराबर होता है।

- सोमवती अमावस्या के दिन 108 बार अगर तुलसी की परिक्रमा करते हो, ओंकार का थोड़ा जप करते हो, सूर्य नारायण को अर्घ्य देते हो; यह सब साथ में करो तो अच्छा है, नहीं तो खाली तुलसी को 108 बार प्रदक्षिणा करने से तुम्हारे घर से दरिद्रता भाग जाएगी।

- यदि शनिवार के दिन अमावस्या आ जाये तो उस दिन की अमावस्या को शनि अमावस्या कहते है इस दिन शनि देव के निमित्त किया गया तेल दान शनि देव जन्य दोषों से मुक्ति दिलाता है।

- अमावस्या के शनिवार को उस पीपल पर जिसके नीचे हनुमान स्थापित हों पर जाकर दर्शन व पूजा करने से शनि जन्य दोषों से मुक्ति मिलती है।
- हर अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे सन्ध्याकाल में दीप दान करने से भी शनि ग्रह की बाधायें दूर होती है।

अमावस्या के दिन क्या न करें :-

- अमावस्या के दिन संसार भोग नही भोगने चाहिये ऐसा करने से विक्लांग सन्तान होती है नही तो मानसिक रूप से बीमार होती है
- अमावस्या के दिन दूसरे की कमाई का अन्न नही खाना चाहिये ऐसा करने से एक महिने के पुण्य अन्न खिलाने वाले के हो जाते है।
- अमावस्या के दिन वनस्पति को नही तोडना चाहिये सूखे पत्ते भी नही तोडने चाहिये ऐसा करने से ब्रह्महत्या का पाप लगता हैं।
- अमावस्या और रविवार को तिल का तेल नहीं खाना चाहिए।
- पद्म पुराण में आता है कि अमावस्या, शुक्रवार व रविवार छोड़कर आंवले का रस रगड़ के स्नान करने से भी लक्ष्मी स्थायी होती है। अतः अमावस्या को आवले के रस से स्नान नही करना चाहिये।

वर्ष २०११ में आने वाली अमावस्या तिथियाँ निम्न हैं :-

०१ - ३-४ जनवरी २०११ (३ जनवरी - सोमवती अमावस्या)
०२ - २-३ फ़रवरी २०११
०३ - ४ मार्च २०११
०४ - ३ अप्रैल २०११
०५ - ३ मई २०११ (सोमवती अमावस्या)
०६ - १ जून २०११
०७ - १ जुलाई २०११
०८ - ३० जुलाई २०११ (शनि अमावस्या)
०९ - २९ अगस्त २०११
१० - २७ सितम्बर २०११
११ - २६ अक्टूबर २०११
१२ - २५ नवम्बर २०११
१३ - २४ दिसम्बर २०११ (शनि अमावस्या)