मंगलवारी चतुर्थी

बुधवार, 3 अगस्त 2011

नागपंचमी

श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाता है । इस दिन नागपूजा करनेकी परंपरा है । प्राचीन कालसे ही हिंदु धर्म में नागपूजाके संदर्भमें उल्लेख पाया जाता है, जो भारतके विभिन्न क्षेत्रोंमें की जाती है । नागपंचमी संपूर्ण भारतमें मनाया जानेवाला त्यौहार है ।नागपूजा यह एक त्यौहारके रूपमें मनाई जाती है । परंतु सौराष्ट्र (गुजरात प्रांतका एक उपराष्ट्र) में नागपूजा एक व्रतके रूपमें की जाती है । सौराष्ट्रमें यह व्रत श्रावण कृष्ण पंचमीके दिन करते हैं । यह व्रत प्रत्येक माहकी उसी तिथिपर १ वर्षतक किया जाता है । अनंत, वासुकी, शेष इत्यादि नागोंका पूजन, ब्राह्मण भोजन देकर एक वर्षके उपरांत व्रतका उद्यापन किया जाता है ।

इसके विषयमें कुछ कथाएं

१. यमुनाजी में (यमुना नदीमें) कालिया नाम का नाग अपने परिवार के साथ रहता था। वह दुष्ट था। उसके कारण वृंदावनवासियों को बहुत कष्ट होते थे। उसकी दुष्टता दूर कर भगवान श्रीकृष्ण जी ने उसे उसके पूरे परिवार के साथ रमणिक द्वीप भेज दिया। वह दिन था श्रावण शुक्ल पंचमी ।

२. महाभारत के अनुसार द्वापर युग के अंत में तक्षक नामक नाग ने पांडव कुल के राजा परीक्षित को दंश किया। इस कारण राजा परीक्षित की मृत्यु हुई। तक्षक द्वारा किए इस अपराधके दंड हेतु राजा परीक्षित के पुत्र राजा जनमेजय ने सर्पयज्ञ आरंभ किया। इस यज्ञमें राजा ने सर्व सर्पों की आहुति देनी आरंभ की। तब तक्षक नाग ने स्वयं को बचाने के लिए देवताओं के राजा इंद्र का आश्रय लिया। यह देखकर राजा जनमेजय ने इंद्राय स्वाहा:। तक्षकाय स्वाहा: कहते हुए यज्ञमें इंद्र की भी आहुति डाली। उसी समय पूरे नागवंश का नाश न हो, इसलिए आस्तिक ऋषि ने तप आरंभ किया और सर्पयज्ञ करने वाले राजा जनमेजय को अपनी तपःश्चर्या से प्रसन्न कर लिया। राजा जनमेजय ने जब उनसे वर मांगने के लिए कहा, तो उन्होंने सर्पयज्ञ रोकने का वर मांगा। जिस दिन राजा जनमेजय ने सर्पयज्ञ रोका, वह तिथि थी श्रावण शुक्ल पंचमी ।

कथाका बोध - राजा जनमेजय ने तक्षक नाग देवताओं के साथ राजा इंद्रकी भी आहुति दी। राजा जनमेजय ने अपनी इस कृत्य द्वारा बोध कराया कि, अपराधी के साथ साथ अपराधी की रक्षा करने वाला अथवा उसे आश्रय देने वाला भी उतना ही अपराधी होता है। उसे भी अपराधी-समान ही दंड देना चाहिए। उसके साथ अपराधी-समान ही वर्तन करना चाहिए।

नागदेवता की पूजा तथा उनकी विशेषताएं -

नाग को पूजा का प्रतीक क्यों माना गया है ? कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है, कि प्राणियों की पूजा करने की यह कैसी पद्धति है ? और इस कारण वे हिंदु धर्मद्वारा बताई उपासना पद्धति को पिछडा हुआ मानते हैं। परंतु सत्य तो यह है कि, ‘इस सृष्टिके कण कण में ईश्वर हैं, सृष्टि का प्रत्येक कण ईश्वर से व्याप्त है’, इसका ज्ञान हिंदु धर्म ने ही इस विश्व को करवाया है । इस बात की पुष्टि भगवान श्रीकृष्णजी ने गीता में अपनी विभूती कथन द्वारा की है । वे कहते हैं, ......नागोंमें श्रेष्ठ ‘अनंत’ मैं ही हूं । संदर्भ : श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय१०, श्लोक २९) इस विषय में गहन विचार करें, तो पाषाण अर्थात् पत्थर, वृक्ष अथवा प्राणी मात्र को भी इस धर्ममें पूजाका प्रतीक माना गया है।

नागदेवताकी विशेषताएं

१ . नाग क्षेत्रपाल देवताओं में से एक हैं। क्षेत्रपाल देवता अर्थात् क्षेत्र की रक्षा करने वाले देवता।
२ . नाग का संबंध भूमि की उपजाऊ शक्ति के साथ जोडा गया है।
३ . नाग इच्छा से संबंधित देवता हैं। वे इच्छा के प्रवर्तक अर्थात् सकाम इच्छाओं की पूर्ति करने वाले कनिष्ठ देवता हैं ।
४ . नाग पवित्रकों के समूह का प्रतीक है। पवित्रक अर्थात् ईश्वरीय चैतन्य के सूक्ष्माति सूक्ष्म कण। ईश्वर चैतन्यस्वरूप हैं। हिंदु धर्म के अनुसार नाग अनेक देवताओं के रूप से संबंधित हैं। भगवान शिवजी ने नौ नाग धारण किए हैं, तो भगवान विष्णु प्रत्येक कल्प के अंत में महासागर में शेषासन पर शयन करते हैं। श्रीगणेशजी ने भी पेट पर नाग धारण किया हैं। नाग पवित्रकों का समूह है। अर्थात् वे सूक्ष्म होते हैं और जिन्हें हम अपने नेत्रों द्वारा अर्थात् स्थूल दृष्टि से देखते हैं, वे नाग इन पवित्रकों के समूह का प्रतिकात्मक स्थूल रूप है। इन नागों मे देवता का रूप देखने के कारण पूजक को आध्यात्मिक लाभ होते हैं।
५. नाग ब्रह्मचर्य का प्रतीक हैं, वे बमीठे मे रहते हैं। जिस व्यक्ती के हाथों बमीठा तोडा जाता है अथवा नाग मारा जाता है, उसे नाग शाप देते हैं।
६. नाग के शाप की तीव्रता अत्यधिक होती है। हमारे पूर्वजों के हाथों यदि ऐसा अपराध हुआ हो, तो उसके संपूर्ण वंश को यह शाप भुगतना पडता है। यह शाप दूर हो; इसलिए अनेक विधियां की जाती हैं। इसके उदाहरण है, आश्लेशा बली, काल सर्प शांति जैसे विधि। इन विधियों में नाग को बली चढाया जाता है । परंतु यहां ध्यान रखिए की, यह बली प्रतिकात्मक होती है। इसमे चावल, गेहूं अथवा तिल के आटे से नाग की आकृति बनाई जाती है और गत काल में मारे गए नाग को आवाहन किया जाता है ।
७. अवतार कार्यसे नागका संबंध
पृथ्वीपर जब अधर्म बढता है, तब दुर्जनों द्वारा अत्याधिक कष्ट दिए जाते हैं। इस कारण साधकों के लिए साधना करना कठिन हो जाता है। तब दुर्जनों का विनाश करने हेतु ईश्वर प्रत्यक्ष रूप धारण कर जन्म लेते हैं। ईश्वर के इसी प्रत्यक्ष रूप को अवतार कहते हैं। ईश्वर का यह अवतार रूप दुर्जनों का विनाश कर धर्म संस्थापना करते हैं। यह धर्म संस्थापना का कार्य ही अवतार कार्य है। जब ईश्वर अवतार लेते हैं, तब उनके साथ अन्य देवता भी अवतार लेते हैं एवं ईश्वर के धर्म संस्थापना के कार्य में सहायता करते हैं। उस समय नाग देवता भी उनके साथ होते हैं। जैसे, त्रेतायुग में भगवान श्रीविष्णु ने राम अवतार धारण किया तब शेषनाग लक्ष्मण के रूप में अवतरित हुए। द्वापर युग में भगवान श्रीविष्णु ने श्रीकृष्ण का अवतार लिया। उस समय शेष बलराम बने।
नागदेवता की पूजा करने की पद्धति नागों में भी कई जातियां हैं। नागों के नौ रूप प्रसिद्ध हैं। नवनाग स्तोत्र में बताए अनुसार वे रूप कुछ इस प्रकार हैं-

अनंतं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबलं ।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम् ।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः।।
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ।।

- नवनाग स्तोत्र इसका अर्थ है : अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक एवं कालिया, इन नौ जातियों के नागों की आराधना करते हैं। इससे सर्पभय नहीं रहता और विष बाधा नहीं होती।

नागदेवता का पूजन -
पीढे पर हलदी से नौ नागों की आकृतियां बनाई जाती हैं। श्लोक में बताए अनुसार अनंत, वासुकि इस प्रकार कह कर एक एक नाग का आवाहन किया जाता है। उसके उपरांत उनका षोडशोपचार पूजन किया जाता है। उन्हें दूध एवं खीलों का नैवेद्य निवेदित किया जाता है। कुछ स्थानों पर हलदी के स्थान पर रक्तचंदन से नौ नागों की आकृतियां बनाई जाती हैं। रक्तचंदन में नाग के समान अधिक शीतलता होती है। नाग के वास् के कारण बमीठे में (नागके घर में) सत्त्व प्रधान वलय तथा कण कार्यरत रहते हैं। बमीठे में चारों ओर शक्ति कार्यरत रहती है।
नाग पंचमी का त्यौहार मनाते समय शास्त्र ने कौन-कौन से निषेध बताए हैं ?
नाग पंचमी का त्यौहार मनाते समय शास्त्र ने कुछ निषेध भी बताए हैं ।
१. कपडे सिलना, भूमि खोदना अथवा भूमि पर हल चलाना, ये कृत्य नहीं करने चाहिए ।
२. नाग पंचमी के दिन कुछ भी काटना और तलना नहीं चाहिए तथा चूल्हे पर तवा नहीं रखना चाहिए । इसका कारण यह है कि नागपंचमी के दिन वातावरण में देवताओं के पवित्रक अर्थात् चैतन्य के अतिसूक्ष्म कण कार्यरत रहते हैं । वे भूमि के अति निकट आते हैं। इस दिन काटने जैसी कृति करने से रज-तम प्रधान स्पंदन निर्माण होते हैं। ये स्पंदन देवता तत्व के कार्य मे बाधा लाते हैं। इसलिए नागपंचमी के दिन काटना, तलना, भूमि खोदना, अथवा भूमि पर हल चलाना, ये कृत्य नहीं करने चाहिए।

नागपंचमी की परंपराएं -

नाग पंचमीके दिन कुछ अन्य बातें भी परंपरागत रूप से चली आई हैं। उनमें से एक है- झूला झूलना। नागपंचमी के दिन स्त्रीयों के झूला झूलने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। झूला झूलते समय आकाश की ओर ऊपर जाते झूले के साथ, अपने भाई की उन्नति हो, एवं नीचे आते झूले के साथ भाई के जीवन में आने वाले दुख दूर हों, ऐसा भाव रखा जाता है। इस परंपरा का पालन आज भी देहातों में होता है। इस दिन स्त्रियां अपने भाई की सुख-समृद्धि तथा उसकी उन्नति के लिए उपवास रख नागदेवता से प्रार्थना करती हैं। नागपंचमी के दिन जो बहन, भाई की उन्नति हेतु ईश्वरसे उत्कंठापूर्वक एवं भावपूर्ण प्रार्थना करती है, उस बहन की पुकार ईश्वर के चरणों में पहुंचती है । अतः प्रत्येक स्त्रीको इस दिन ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु प्रत्येक युवक को सद्बुद्धि, शक्ति एवं सामर्थ्य प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए। नागपंचमी का आध्यात्मिक महत्त्व तथा संतों का दृष्टिकोण नागों में देवता का रूप देखने के कारण पूजक को आध्यात्मिक लाभ होते हैं। इस सृष्टि के समस्त जीव एवं जीवाणुओं की निर्मिति इस सृष्टि के कार्य के लिए हुई है । इनका पूजन कर हम यह अनुभूत कर सकते हैं कि ईश्वर इनके माध्यम से कार्यरत है। नागपंचमी के दिन नागदेवता का पूजन करने से इस विशाल दृष्टिकोणकी सीख हमें मिलती है।
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’)