मंगलवारी चतुर्थी

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

ऋषि पंचमी

२० सितम्बर को ऋषि पंचमी का व्रत है यह व्रत सभी महिलाओं को रखना चाहिए क्योंकि अपने रजस्वला दिनों में उनसे जाने-अनजाने जो गलतियाँ हो जाती है इस व्रत के रखने से वह प्रभाव समाप्त हो जाता है|
बापू जी ने इस व्रत से जुडी कहानियों के जरिये यही बात अच्छे से समझाई है:-
इस ऋषि पाँचम के विषय में भिन्न भिन्न युग की कथायें शास्त्रों में मिलती है| सतयुग की एक कथा है कि विदर्भ देश के प्रसेनजीत राजा, अपनी जयश्री नाम की पत्नी के साथ जीता था| जयश्री को सत्संग और राजा को सत्संग और सत्शास्त्रो का सहारा नहीं था| जयश्री रजस्वला होने पर भी रसोईघर में जाती, रसोई बनाती और पति को खिलाती थी और उसका पति भी रजस्वला जयश्री से परहेज नहीं रखता था| रजस्वला स्त्री के साथ उठने बैठने से पुरुष की मति का जो सूक्ष्म विकास होना चाहिए, वह स्थगित हो जाता है| समय पाकर प्रसेनजीत की मृत्यु हुई| बुद्धि मोटी होने के कारण वो बैल बना और स्त्री ने रजस्वला दिनों में भी रसोई घर में रसोई बनायी और अपने पुत्र और परिवार को खिलाई उस दोष के प्रभाव से उसको कुतिया का शरीर मिला, ऐसी कथा आती है| रजस्वला होने पर भी रसोई घर में रही और अपने अशुद्ध हाथों से भोजन कराने का पाप उसको भुगतने के लिए उसको कुत्ती का शरीर मिला, ऐसी कथा आती है फिर क्या हुआ महाराज! कि दैवयोग से वो अपने पुत्र के यही आकर रहे थे और पुत्र पशुओं की भाषा जानता था और दैवयोग से उनका पूर्व जीवन जान लिया| अब इस माता-पिता के पूर्व जीवन के दोष को निवृत करने के लिए शास्त्रकारों और संतों की शरण ली और संतों ने बताया ऋषि पाँचम का विधिवत व्रत करने से उनका ये दोष निवृत होगा और सदगति हो जायेगी|
दूसरी भी कथा आती है और युगों की, कि उतंग नाम के एक ब्राह्मण थे उनको एक पुत्र था और दूसरी पुत्री थी | ब्राह्मण बड़े विद्वान थे और पिता का संग करने से पुत्र भी वेद शास्त्रों में पारंगत हुआ| पुत्री की शादी हो गयी, लेकिन थोड़े दिनों में पुत्री विधवा हो घर चली आयी| विधवा लड़की घर आने पर ब्राह्मण का मूड खराव हो गया| जीवन की नश्वरता जानकर उस ब्राह्मण देव उतंग नाम ब्राह्मण को गंगा किनारे निवास करने की रुचि हुई सपरिवार, वह गंगा किनारे अपने परिवार सहित रहता और ब्रह्मचारियों को वेदों का अध्ध्यन कराता उतंग ब्राह्मण, उस कन्या को कोई रोग हुआ और शरीर में कीड़े पड़े| विधवा कन्या वैसे ही दुखी थी और रुग्ण हुई और कीड़े पड़े| माँ दुखी हुई और बेटी के दुःख का क्या कारण हैं अपने पति से पूछा, उतंग ब्राह्मण ने ध्यान लगा कर अपनी कन्या का पूर्व जीवन देखा| उतंग ऋषि ने कहा “ रजस्वला का पहला दिन स्त्री का होता है वो चाण्डाली जैसे वेव्स होते है उसमें, दूसरा दिन ब्रह्म तेज घातिनी जैसा होता है, तीसरा दिन धोबिन जैसा और चौथे दिन स्नान करके वो शुद्ध मानी जाती है लेकिन अगले जन्म में इसने इस रजस्वला धर्म का पालन नहीं किया था अपितु जिन नारियों ने जाने-अनजाने कही गलती की उनका प्रायश्चित करने के लिए ऋषि पाँचम का व्रत किया था, उन महिलाओं की हँसी उडाई थी, हँसी उड़ाने का पाप के कारण इसको यह रोग हुआ है और कीड़े पड़े है| है तो मेरी कन्या लेकिन कर्म की गति भी तो अपना काम करती है अब एक ही उपाय है कि ऋषि पाँचम का व्रत किया जाय प्रभात काल उठे और स्नान आदि करे ८ बार दातून करके अपना मुख स्वच्छ करके अपने चित्त को स्वच्छ करने के लिए पंचगव्य का पान करें| गोबर का चौका लीपा करे, घड़ा रखे तांबे का, कपडे से ढके, ऊपर ताँबें का पात्र रखे| जौ, फूल, गंध, चावल, अष्टदल कमल आदि रखकर सप्त ऋषियों का मानसिक आह्वाहन करके उनका पूजन करें| अरुंधती को प्रार्थना करें और उनसे प्रेरणा और आशीर्वाद पाए तो महिलाओं का ओज-तेज बढ़ेगा और जाने-अनजाने जो गलतियाँ हो गयी हों वो क्षम्य हो जायेंगी और आने वाले वर्ष में कुटुंब के और व्यक्ति रसोई बनाकर रजस्वला दिनों में परिवार को खिलाए ऐसा थोड़ी व्यवस्था करें तो परिवार के सदस्यों की बुद्धि तेजस्वी रहेगी.....

स्रोत - ऋषि दर्शन, अंक ९,  सितम्बर २०१२




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